रेबीज के टीके की खोज करने वाले महान वैज्ञानिक लुई पाश्चर के जीवन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी
रेबीज के टीके की खोज करने वाले महान वैज्ञानिक लुई पाश्चर
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लुई पाश्चर महान वैज्ञानिक
वैसे तो दुनिया में बहुत से वैज्ञानिकों का नाम उनकी खोजों के साथ जोड़ा जा चुका है।लेकिन लुई पाश्चर जैसे वैज्ञानिक को अपनी खोज करने के साथ-साथ जीवन में और भी बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
सन 1822 में लुई पाश्चर के पिता चमड़े का काम करते थे, उनकी बहुत इच्छा थी कि वहां अच्छे से पढ़ लिख लेते तो वहां किसी ऑफिस में बैठकर काम करते और उन्हें सारा दिन मरे हुए जानवरों के चमड़े पर काम नहीं करना पड़ता।
1 दिन लुई पाश्चर के पिता को खबर मिली कि उनकी पत्नी ने एक लड़के को जन्म दिया है।यहां बात जानकर उनको बहुत खुशी हुई और उन्होंने तय किया कि वहां भले ही ना पढ़े लिखे हो लेकिन वहां अपने पुत्र को पढ़ा लिखा कर एक बहुत बड़ा आदमी बनाएंगे।
नहीं पास चार का जन्म 27 दिसंबर 1822 को फ्रांस में हुआ। लुई पाश्चर के पिता निर्धन होते हुए भी उन्होंने लुई पाश्चर का दाखिला एक महंगे स्कूल में करवाया। क्योंकि वहां चाहते थे कि उनका बेटा पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बने।
लेकिन उन्हें दुख जब हुआ जब उन्हें यहां पता चला कि उनका बेटा पढ़ाई में बहुत कमजोर है। इसी कारण क्लास के सभी छात्रों को ने मंदबुद्धि लुई के नाम से पुकारते थे। वैसे तो वही पास चार बहुत ही मेहनती थे,वहां अपने पिता के काम में हाथ बटा दिया करते थे।
एक बार की बात है लुई पाश्चर और उनका परिवार जिस गांव में रहता था वहां गांव एक घने जंगल के करीब था। जिस कारण गांव में रहने वाले कुछ लोगों को भेड़ियों ने अपना शिकार बना लिया और उन लोगों की मृत्यु हो गई।
मृत्यु का कारण जब पता चला तो यहां बात सामने आई कि वीडियो के काटने से उन लोगों में रेबीज नामक बीमारी फैल गई थी जिसके चलते उनकी मृत्यु हो गई।
यहां बात लुइ पाश्चर के दिल में बहुत बड़ा घांव कर गई और उन्होंने अपने पिता से पूछा कि क्या इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। तो उनके पिता ने कहा कि तुम पढ़ लिख कर इस दवाई का इलाज ढूंढ सकते हैं।
पिता की बात सुनकर लुइ पाश्चर ने यहां दृढ़ निश्चय किया कि वह इस बीमारी का इलाज जरूर ढूंढ लेंगे और लोगों को इस भयानक बीमारी से बचाएंगे।
लुई पाश्चर कि जब स्कूली शिक्षा खत्म हुई तो उन्हें कॉलेज की पढ़ाई करने के लिए उनके पिता ने पेरिस भेजा। लुई पाश्चर ने विज्ञान के हर क्षेत्र में पढ़ाई की।
लुई पाश्चर द्वारा जीवाणु नामक शब्द का प्रयोग
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लुई पाश्चर में अपने जीव विज्ञान के क्षेत्र में प्राप्ति की गई जानकारी के अनुसार यहां पाया कि हमारे खाने पीने की चीजों पर भी कुछ जीवाणु रहते हैं इन जीवाणुओं के वजह से ही हमारी खाने पीने की चीज कुछ समय बाद खराब होने लगती है।
इससे पहले जीवाणु नामक शब्द का प्रयोग किसी भी वैज्ञानिक ने नहीं किया उन्होंने अपने प्रयोगों में यह भी पाया की यह जवानों ज्यादा तापमान पर जीवित नहीं रह सकते इसके लिए उन्होंने दूध को 75 डिग्री सेल्सियस पर गर्म किया और फिर उसे ठंडा किया। इसी विधि को पाश़चीकरण कहते हैं। तथा इस विधि का नाम लुइ पाश्चर के नाम पर ही रखा गया।
लुई पाश्चर ने पाश्चुरीकरण की विधि के बाद यहां पाया कि अगर किसी भी खाने पीने की चीज को गर्म कर रखा जाए तो उसके खराब होने की समय अवधि बढ़ जाएगी। अर्थात वहां पहले की तुलना में अब जल्द खराब नहीं होगी।
रेबीज के टीके की खोज
रेबीज के टीके की खोज से पहले लुई पाश्चर ने बहुत से जानवरों जो रेबीज नामक बीमारी से संक्रमित थे उन पर प्रयोग किया। और अपने प्रयोगों में यह पाया कि यह वायरस जंतुओं के शरीर में तो पाया जाता है परंतु जंतुओं के मुंह में उपस्थित लार में भी यह वायरस पाया जाता है।
मेरे पास चल नहीं रहे बिक नामक विषय ले वायरस को दुर्बल करके एक वैक्सीन तैयार की जिसका प्रयोग सर्वप्रथम उन्होंने एक मुर्गी पर किया। वह मुर्गी उन मुर्गियों के पास में थी जो रेबीज नामक वायरस से संक्रमित पर वहां अभी स्वस्थ थी। इस आधार पर उन्होंने रेबीज नामक व्यक्ति की स्वयं उस मुर्गी में लगाई और आश्चर्य की बात है यहां हुई कि वहां मुर्गी उन मुर्गियों के पास रहकर भी बिल्कुल स्वास्थ्य थी।
इसके बाद उन्होंने दूसरा प्रयोग रेबीज वायरस नामक कुत्ते पर किया। उन्होंने उस कुत्ते पर रेबीज नामक वैक्सीन की सुई लगाई और वहां कुत्ता धीरे-धीरे स्वस्थ हो गया।
एक बार की बात है लुइ पाश्चर अपनी साइंस की लैब में प्रयोग कर रहे थे। तभी अचानक एक महिला आई और उनसे कहने लगी कि मेरे पुत्र को 2 दिन पहले पागल कुत्ते ने काटा है। लुई पाश्चर ने उस महिला की बात सुनी और उन्हें बताया कि यह वैक्सीन अभी तक मनुष्य पर प्रयोग नहीं की गई है तो वहां कैसे इस बच्चे का इलाज उस वैक्सीन से कर सकते हैं।
अगर उस बच्चे पर यहां प्रयोग नहीं किया गया तब भी वहां बच्चा हाइड्रोफोबिया नामक बीमारी का शिकार होकर मर सकता था।परिस जैकसन का प्रयोग अभी तक किसी भी इंसान पर नहीं किया गया था इसके वजह से लुइ पाश्चर उस बच्चे पर प्रयोग कम करने में घबरा रहे थे कि कहीं वैक्सीन का असर उल्टा हो गया तो उस बच्चे की जान जा सकती है लेकिन उनके मन में एक बात यह भी थी कि अगर इस बच्चे का उपचार नहीं किया गया तो भी है बच्चा नहीं बच सकता।
इस बात का ध्यान में रखते हुए उन्होंने पहली बार उस बच्चे पर वैक्सीन का प्रयोग करने का निर्णय लिया,और वहां उस बच्चे के शरीर में उस व्यक्ति की रोज थोड़ी थोड़ी मात्रा देने लगे जिसके चलते वहां बच्चा हाइड्रोफोबिया नामक बीमारी का शिकार नहीं हुआ, और वहां बच्चा धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगा।
इस वैक्सीन का सर्वप्रथम प्रयोग जिस बच्चे पर किया गया उसका नाम जोजैफ था। और यहां प्रयोग सफल रहा। बाईपास चलने मानव जाति को यहां एक अनोखा उपहार दिया इसके चलते लुइ पाश्चर के देशवासियों ने उन्हें सम्मान प्रदान किया और उनके नाम से पाश्चर नामक इंस्टिट्यूट का निर्माण किया।
महान वैज्ञानिक लुइ पाश्चर की मृत्यु
28 सितंबर 1895 को 72 साल की उम्र में निंद्रा अवस्था में लुइ पाश्चर की मृत्यु हो गई।लुई पाश्चर उन महान वैज्ञानिकों में से थे जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानव जाति के कल्याण में लगा दिया वह हमेशा अपने प्रयोगों में व्यस्त रहते थे ।